इतनी कड़वाहट कहा से लाती हो
सुबह क्या नीम के पत्ते चबाती हो
याद आने पर तुम्हारी देख लेता हूं चांद को
तुम तन्हाई किस तरह मिटाती हो
सारी रात बीत जाती है बेचैनी में मेरी
बेवफाई करके तुम चैन से कैसे सो पाती हो
सामना होने पर आंख बचाकर निकल लेती हो
आंख मिचौली का ये खेल कैसे खेल जाती हो
आंख से कचरे की तरह निकाल फेंका मुझे
लेकिन तुम अब भी मेरी आंखों में समाती हो
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