Saturday, 29 August 2020

इतनी कड़वाहट कहा से लाती हो

इतनी कड़वाहट कहा से लाती हो

सुबह क्या नीम के पत्ते चबाती हो


याद आने पर तुम्हारी  देख लेता हूं चांद को

तुम तन्हाई किस तरह मिटाती हो


सारी रात बीत जाती है बेचैनी में मेरी

बेवफाई करके तुम चैन से कैसे सो पाती हो


सामना होने पर आंख बचाकर निकल लेती हो

आंख मिचौली का ये खेल कैसे खेल जाती हो


आंख से कचरे की तरह निकाल फेंका मुझे

लेकिन तुम अब भी मेरी आंखों में समाती हो

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