Wednesday, 26 August 2020

इलाहाबाद की वह लड़की

इलाहाबाद की वह लड़की


श्वेत वर्ण

मानो पानी में घोलकर पी गई हो 

चांद को


आंखे 

काले अंधेरे जंगल जैसी

जिनमें भटक जाता था रास्ता


घुंघराले बाल

जिनमें फेरना चाहता था

हाथ


लम्बी नाक

जिसपर चढ़ा रहता था हमेशा

गुस्सा


गुलाबी होंठ

हमेशा हिलते रहते थे बातूनी के

जिन्हें अपने होंठों से करना चाहता था बंद


सूरत उसकी परी जैसी

सीरत पतित पावन गंगा जैसी

मैं हिमालय से निकली नदी की तरह

उससे मिलने चला आया इलाहाबाद


इलाहाबाद की उस लड़की को था घमंड

शायद खुद के गंगा होने का

एक पल में दिया मुझे ठुकरा संगम से

सोचा मिल जाऊंगा किसी नाले से मैं

या जाऊंगा सूख वियोग में


सुन इलाहाबाद की लड़की

आंसुओ से भर लूंगा अपने आप को

बन जाऊंगा बंगाल की खाड़ी

दरिया होकर तुझे

तब खुद आना होगा समुंद्र में 

मुझसे मिलने


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