Saturday, 29 August 2020

सोता हूं तुझसे मिलने कि चाहत में

सोता हूं तुझसे मिलने कि चाहत में

अब ख्वाबों में ही मुझे राहत है


कुंभकरण अब जग जाता  बिन ढोल नगाड़ों के

हल्की आवाज़ भी लगती उसे तेरी आहट है


कैसे बसर होगी ज़िन्दगी तेरे बिना

बस इस बात की घबराहट है


मेरी मौत का इल्ज़ाम तेरे सिर ना आ जाए 

इसलिए वतन के लिए शहीद होने कि हड़बड़ाहट है

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