सोता हूं तुझसे मिलने कि चाहत में
अब ख्वाबों में ही मुझे राहत है
कुंभकरण अब जग जाता बिन ढोल नगाड़ों के
हल्की आवाज़ भी लगती उसे तेरी आहट है
कैसे बसर होगी ज़िन्दगी तेरे बिना
बस इस बात की घबराहट है
मेरी मौत का इल्ज़ाम तेरे सिर ना आ जाए
इसलिए वतन के लिए शहीद होने कि हड़बड़ाहट है
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