लोग मुझसे पूछते है सच्ची मोहब्बत कब होती है
जब इंसान खुद को समझने लगे फरिश्ता तब होती है
महबूबा के सिवा फिर कुछ आता नहीं है नज़र
उसका ज़िक्र आते ही महफ़िल में झुख जाती है नज़र
वस्ल के लिए छोड़ देता है इंसान सब ज़रूरी काम
हिज्र की कल्पना मात्र से हो जाता है काम तमाम
सच्ची मोहब्बत तब होती है
रंग, रूप, जाति, धर्म से नहीं रह जाता है कोई मतलब
कर्मकांड, बुजुर्गो की बंदिशें लगने लगती है बे -मतलब
घर के कोने में पड़े आईने को लिया जाता है निकाल
सुबह शाम चेहरे और बालों की करने लगते है देख-भाल
सच्ची मोहब्बत तब होती है
हिन्दू यकीन करने लगता है जन्नत जहन्नुम में
मुसलमान यकीन करने लगता है पुनर्जन्म में
माशूका को समझने लगता है वो एक अप्सरा
उसके हाथ में दे देता है अपने जीवन का एक सिरा
सच्ची मोहब्बत तब होती है
रश्क-ए-कमर के लिए रहते है तत्पर मर मिटने को
देते नहीं उसकी जीवन में खुशियां सिमटने को
बरसात के मौसम में जी चाहता है साथ रपटने को
सच्ची मोहब्बत तब होती है
भूख प्यास लगती नहीं
पलके नींद से झपकती नहीं
पैर चलते -चलते थकते नहीं
फिर भी चेहरे की चमक बुझती नहीं
सच्ची मोहब्बत तब होती है
बाकी सब सपने लगने लगते है बोझिल
जीवन में रह जाती है सिर्फ वो एक मंज़िल
उसको करने हासिल बुजदिल भी बन जाता है शेरदिल
लहरों से लड़ता हुआ पहुंच जाता है साहिल
सच्ची मोहब्बत तब होती है
मैं क्या बताऊं सच्ची मोहब्बत कब होती है
जब होगी तू खुद जान जायेगा
और मुकम्मल ना होने पर दुनिया जान जायेगी
तुझे सच्ची मोहब्बत कभी हुई थी
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