भीड़ में, अंजानो के बीच
तुम्हारी याद एक एहसास दिलाती है
कि अपनापन एक नायाब चीज़ है
चोट पर मरहम के बाद
मिलने वाला आराम भी शायद तुम्हारा ही रूप हो
जेठ की तपिश में
थके हारे पथिक को
तरुवर की छाया सरीखा पुण्य भी तुम
यानी इस अंधकारमय जीवन में
आशा की एकमात्र दिपदिपाती लौ
हो तुम
thnx for readind and lyking it :)
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