दूर पहाड़ी पर है मेरी मंजिलरास्ता है कठिनफेफड़ो में हवा भी कम है
माता - पिता की उम्मीदों नेबढ़ा दिया है पीठ पर बोझाऔर इस बोझे को ढोने के लिए एक 'डोटियाल' भी नहीं ले सकता मैंकि घर से लाया था जो पैसे, गांठ बाध कर - होम कर चुका
घर वालों की उम्मीदों पर खरा उतरने की शुरुआती जोर-आजमाइश में
फ़िलहाल मन में है चाहे कितना भी संशयक्योंकि जीवन में मिली हैं बस असफलताएंऔर किस्मत से रहा है हमेशा छत्तीस का आंकड़ा
ठान तो लिया ही है कि पहाड़ पर चढ़ाई करूँ
और फहराऊं चोटी पर पताका कामयाबी की
ताकि माँ हर्षाये खुल कर, पिता मुदित हों मन ही मन
और मुझे मिलती जाये जरुरत भर आक्सिज़न
फेफड़ों के लिए.
Thnx :)
ReplyDelete