Friday, 28 September 2012

तुम

भीड़  में, अंजानो  के  बीच  
तुम्हारी  याद  एक  एहसास  दिलाती   है
कि   अपनापन  एक  नायाब  चीज़  है 

चोट  पर   मरहम  के   बाद 
मिलने  वाला  आराम   भी   शायद   तुम्हारा  ही  रूप  हो  

जेठ  की   तपिश  में 
थके  हारे  पथिक  को  
तरुवर  की  छाया  सरीखा   पुण्य  भी  तुम 

यानी  इस  अंधकारमय   जीवन  में  
आशा  की  एकमात्र  दिपदिपाती  लौ  
हो  तुम 


Wednesday, 26 September 2012

मंजिल

दूर  पहाड़ी  पर  है  मेरी  मंजिल  
रास्ता  है  कठिन  
फेफड़ो  में  हवा  भी  कम  है

माता -  पिता  की  उम्मीदों  ने  
बढ़ा  दिया  है  पीठ  पर  बोझा  
और इस बोझे  को  ढोने  के  लिए एक  'डोटियाल'  भी  नहीं  ले  सकता  मैं
कि घर  से  लाया था जो  पैसे, गांठ बाध कर  - होम कर चुका
    घर वालों की उम्मीदों पर खरा उतरने की शुरुआती जोर-आजमाइश में

 फ़िलहाल मन  में  है  चाहे  कितना भी  संशय
 क्योंकि जीवन  में  मिली  हैं  बस  असफलताएं  
 और किस्मत  से  रहा  है हमेशा  छत्तीस  का आंकड़ा 
    ठान तो लिया ही  है  कि पहाड़  पर  चढ़ाई करूँ
    और फहराऊं  चोटी पर पताका कामयाबी की
 
    ताकि माँ हर्षाये खुल कर, पिता मुदित हों मन ही मन
    और मुझे मिलती जाये जरुरत भर आक्सिज़न
    फेफड़ों के लिए.

Monday, 24 September 2012

Learning From Failure

Today, while having a talk with one of my friend ; he made me to think where have I reached in the race of life.  When I looked back at my fellow companions who started the race with me, I was shocked as there was no one behind. They all have crossed the finis line.

It is not that I am envious of the success of my comrades. But I am dejected and surprised as I was running in the wrong direction. I started the race with full zeal and enthusiasm, was well prepared for the fierce competition and was way ahead of others till midway. At first I failed to find the reason which made me to digress from the finish line.

As the race was over, there was no use of running. So I stopped to think the reason of my failure. When I ponder upon I realised my mistake. I cannot blame my coach or any other person for my debacle. With much brainstorming i came to the conclusion that whole fault is mine.

All my friends went to their home happily with medals on their necks. But I did not loose heart. A great man has said that life is all about opportunities. This time I will prepare more. I have decided to change my event. I will take part in a more difficult race. A medal in any event is of equal value. This race is tough but I will not stop before the finish line.  

Monday, 3 September 2012

इंजीनियरिंग की पढ़ाई


इंजीनियरिंग की पढ़ाई
जैसे चट्टानों पर चढ़ाई
अपने पल्ले कुछ न आता
क्लास में बैठ बस ऊँघता ही जाता
 
वही कम्प्यूटर जिस पर घर में देखते हैं  फिल्म, खेलते गेम
न जाने क्यों प्रैक्टिकल में मारता है  करेंट ....
 
यूँ तो रखता  हूँ  शौक लिखने का
और लिखी भी हैं दस-बारह छोटी-मोटी कवितायेँ
लेकिन ' जनरल ' लिखने में मरती है नानी
और इन्हें सबमिट करने में आते हैं पसीने, छूट जाते हैं छक्के
 
साल भर टीचर की करनी पड़ती है चापलूसी
तब जाकर कुछ बात है बनती
तारीखों की तरह बदलते हैं हौड
प्रिंसिपल तो हैं ही ईद के चाँद
 जिस दिन दिख गए - समझ लो वह दिन है ख़ास
 
पूरी पी. एल. बीत जाती है सुस्ती में या फिर मटरगश्ती में 
इम्तिहान से दो दिन पहले  ब-मुश्किल खुल पाती हैं किताबें 
 हर काला अक्षर भैंस से भी बड़ा दिखाई देने लगता है
इसलिए किताबें बंद कर दिल रोने को करता है, जी कहीं  भाग जाने को .... 
 
आंखिरकार सोचता हूँ
रेगुलर रहा होता सेमेस्टर भर
न किये होते लेक्चर बंक
तो डेट-शीट मिलने पर 
फर्रे बनाने का ख्याल
न लगता एक कारगर औजार की तरह
 
जिसको बांध कर पोशीदा तरीके से
निकला जाता है चट्टान की ओर.