अपने संगी साथियों से
अलग था वो
बमुश्किल मिल पाता था
उसे दो जून का खाना
नहीं करता था अपने माँ - बाप
से जिद खिलौनों की वह
अनाथ , जो था अभागा ।
पढ्ने जाता था
एक सरकारी स्कूल में
कुछ फटी पुरानी पन्नों वाली कापियाँ ,
बिना जिल्द लगी
थी उसकी किताबें ।
सहेजने के लिए उन्हें
बस्ता भी नहीं था उसके पास
क्या कर सकता था ?
मुफलिसी का मारा ,
जो था बेचारा ।
मोहल्लें के बाकी बच्चे
खेलते नहीं थे उसके साथ
शाम को ।
उनके माँ - बाप ने दे रखी थी
उन्हें हिदायतें
इसलिए दे दिया करते थे वे उसे घुड़की
पाकर अपने घर के निकट ।
दोष था उसका इतना
कि वह था एक अछूत ।
आज वही दुत्कारा फटकारा गया लड़का
बन गया हैं कलेक्टर ,
पर अभी भी औरों से
अलग हैं वो ।
अपने सहयोगियों की भांति
वह रिश्वत नहीं लेता ,
और ऊँचे पद का अपने
तनिक भी घमंड नहीं ।
अलग था वो
बमुश्किल मिल पाता था
उसे दो जून का खाना
नहीं करता था अपने माँ - बाप
से जिद खिलौनों की वह
अनाथ , जो था अभागा ।
पढ्ने जाता था
एक सरकारी स्कूल में
कुछ फटी पुरानी पन्नों वाली कापियाँ ,
बिना जिल्द लगी
थी उसकी किताबें ।
सहेजने के लिए उन्हें
बस्ता भी नहीं था उसके पास
क्या कर सकता था ?
मुफलिसी का मारा ,
जो था बेचारा ।
मोहल्लें के बाकी बच्चे
खेलते नहीं थे उसके साथ
शाम को ।
उनके माँ - बाप ने दे रखी थी
उन्हें हिदायतें
इसलिए दे दिया करते थे वे उसे घुड़की
पाकर अपने घर के निकट ।
दोष था उसका इतना
कि वह था एक अछूत ।
आज वही दुत्कारा फटकारा गया लड़का
बन गया हैं कलेक्टर ,
पर अभी भी औरों से
अलग हैं वो ।
अपने सहयोगियों की भांति
वह रिश्वत नहीं लेता ,
और ऊँचे पद का अपने
तनिक भी घमंड नहीं ।
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