अब वह समय नहीं रहा
जब एक रूपये की
टाफियाँ आती थी चार
और उसको खाते थे
मिल बांट यार
पडोसी की तरक्की पर
होती थी खुशी
भाई का बच्चा जब आता था अव्वल
करके मेहनत खूब , बहाकर पसीना
गर्व से चौड़ा हो जाता था खुद का सीना
अजनबियों को देने से आसरा
कोई न था घबराता
अनजान से पूछ लो पता
तो मंजिल पर ही छोड़ आता
जो नेता निभाते थे अपने किये वादे
उन्हें कोई कैसे भुला दे
सरकारी दफ्तरों में होता काम फटाफट
कि अफसर हिलाते थे हाथ सटा-सट
माँ - बाप करते थे
बच्चों की शादी तय
और संताने भी निभा ले जाती थी उसे सातों जनम
पर अब हो रहा है सभी कुछ उलटा ........
क्योंकि अब वह समय नहीं रहा ।
जब एक रूपये की
टाफियाँ आती थी चार
और उसको खाते थे
मिल बांट यार
पडोसी की तरक्की पर
होती थी खुशी
भाई का बच्चा जब आता था अव्वल
करके मेहनत खूब , बहाकर पसीना
गर्व से चौड़ा हो जाता था खुद का सीना
अजनबियों को देने से आसरा
कोई न था घबराता
अनजान से पूछ लो पता
तो मंजिल पर ही छोड़ आता
जो नेता निभाते थे अपने किये वादे
उन्हें कोई कैसे भुला दे
सरकारी दफ्तरों में होता काम फटाफट
कि अफसर हिलाते थे हाथ सटा-सट
माँ - बाप करते थे
बच्चों की शादी तय
और संताने भी निभा ले जाती थी उसे सातों जनम
पर अब हो रहा है सभी कुछ उलटा ........
क्योंकि अब वह समय नहीं रहा ।
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