Sunday, 15 July 2012

सपना

अक्सर  देखता  हूँ
एक  सपना
जो  जगा  देता  है
मुझे  गहरी  नींद  से ।

नहीं  दिखते  हैं
कोई  भूत  या पिशाच                                     
न  ही,  किसी  प्रिय  के
खोने  का   होता  है  डर ।


दिखते  हैं  तो  बस
भूख  से  रोते - बिलखते  बच्चे
सूखे  की  मार  से
आत्महत्या  करते  किसान ,
वह  परिवार  जो  बाढ़   में
खो  चुके  हैं  सब  कुछ
और  आतंकवादियों  की गोलियों  के
शिकार  कुछ  मासूम  ।


यही  सपना  डरा 
देता  है  मुझे

उठकर  सोचता  हूँ
क्या  कभी  कुछ  कर पाऊंगा
इनके  लिए
या  मैं  भी  बने  रहूँगा
एक  मूक - दर्शक ....

जो  फिर  सो  जायेगा 
एक  अच्छे  सपने की 
चाह  में ।

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