अक्सर देखता हूँ
एक सपना
जो जगा देता है
मुझे गहरी नींद से ।
नहीं दिखते हैं
कोई भूत या पिशाच
न ही, किसी प्रिय के
खोने का होता है डर ।
दिखते हैं तो बस
भूख से रोते - बिलखते बच्चे
सूखे की मार से
आत्महत्या करते किसान ,
वह परिवार जो बाढ़ में
खो चुके हैं सब कुछ
और आतंकवादियों की गोलियों के
शिकार कुछ मासूम ।
यही सपना डरा
देता है मुझे
उठकर सोचता हूँ
क्या कभी कुछ कर पाऊंगा
इनके लिए
या मैं भी बने रहूँगा
एक मूक - दर्शक ....
जो फिर सो जायेगा
एक अच्छे सपने की
चाह में ।
एक सपना
जो जगा देता है
मुझे गहरी नींद से ।
नहीं दिखते हैं
कोई भूत या पिशाच
न ही, किसी प्रिय के
खोने का होता है डर ।
दिखते हैं तो बस
भूख से रोते - बिलखते बच्चे
सूखे की मार से
आत्महत्या करते किसान ,
वह परिवार जो बाढ़ में
खो चुके हैं सब कुछ
और आतंकवादियों की गोलियों के
शिकार कुछ मासूम ।
यही सपना डरा
देता है मुझे
उठकर सोचता हूँ
क्या कभी कुछ कर पाऊंगा
इनके लिए
या मैं भी बने रहूँगा
एक मूक - दर्शक ....
जो फिर सो जायेगा
एक अच्छे सपने की
चाह में ।
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