Thursday, 12 July 2012

मेरी class के पंखे

तीन  साल  हो  गए  मुझे  college  मे । 5  semester  बड़े  मजे  से  गुजरे । पर  पिछला  semester  मेरे  लिए किसी  दुर्घटना  से  कम  न  था । इसका  कारण  था  compulsory attendance  का  ' तुगलकी फरमान ' । तुगलकी  इसलिए  क्यूकि   ढाई  सालो  में   किसी  ने  attendance ki  सुध  नहीं  ली  थी ।

अब  आप  सोच  सकते  हैं  की  जो  ढाई  साल  तक  college अपनी  मर्ज़ी  से  गया  हो ( अधिकतर  नहीं  गया ) उसके  लिए  रोज़  कॉलेज  जाना  mount everest  चढ़ना  सरीखा  कार्य  था ।
बहराल  exam  में  न  बैठने  दिये  जाने  के  डर से  मैंने  college  जाना  आरंभ  कर  दिया ।

जब  पहले  दिन  मैं  class  पंहुचा  तो  वह काफी  भरी  हुई  थी । मैं  कोने  में  जाकर  बैठ  गया । जिस  चीज़  ने  मेरा ध्यान  सबसे  ज्यादा  आकृष्ट  किया  वह  थे  हमारी  class  के  पंखे । 4  में  से  केवल  1 चलता  था  । वह  भी  ऐसे  मानों  घूमकर  एहसान  कर  रहा  हो । उस  पंखे  के  नीचे  बैठने  का  सौभाग्य  मुझे  कभी  प्राप्त  नहीं  हुआ, इसलिए  मैं आपको  यह  नहीं  बता  सकता  की  वह  हवा  करता  भी  था  या  सिर्फ  हमारी  तरह  college  में  अपना  कार्यकाल  पूरा  कर  रहा  था ।

बाकि  के  पंखे  जो  ' मनमोहन ' के  मुह  की  तरह  बंद  थे ,  उनके  पंख  मंदी  की  मार  खाई  अर्थव्यवस्था  की  तरह  झुके  थे । अपने  एक  सहपाठी  से  पूछने  पर  मालूम  पड़ा , कुछ  शैतान  लडकों  ने  पंख  पर  लटकर  उन्हें  टेडा  कर  दिया  था । पंखो  पर  इतनी  धूल  जमी  थी , जितने  पुराने  ज़माने  की अभिनेत्रियों  के  तन  पर  कपड़े  हुआ  करते  थे  ।

मार्च  के  महीने  में  पुणे  में  गर्मी  अधिक  हो  जाने  के  कारण  विद्यार्थियों  का  class  में  बैठना  मुश्किल  हो  गया । एकमात्र  पंखा  जो  चलता  था , उसके  नीचे  बैठने   वाले 8-10   छात्र  fixed  थे । जो  हर  रोज़  समय  से  आधा  घंटा  पूर्व  आकर  पंखे  की  नीचे  वाली  सीट  पर  बैठ  जाते थे  ।

गर्मी  से  परेशान  होकर  हमने  अपनी  समस्या  से  टीचर  को  अवगत  कराया । वैसे  टीचर  रोज़  हमे  बंद  पंखो  के  नीचे  पढाते  थे । शायद  हमारी  ओर  से  पहल  का  इंतज़ार  कर  रहे  थे । हमारी  ओर  से  औपचारिक  शिकायत  दर्ज  करने  पर  एक   नेता  की  तरह  आश्वासन  दिया  की  समस्या  का  जल्द  समाधान  होगा ।

1-2 हफ्तों  तक  जब   कोई  कदम  नहीं  उठाया  गया  तो  फिर  शिकायत  दर्ज  की गयी । इस  बार असर  हुआ  और  अगले  ही  दिन  दो  आदमी  चलती  हुई  कक्षा  के  बीच  में  आए  । मुझे  लगा  पंखा  ठीक  करने  electrician  हैं  ।  पर  मैं  दंग  रह  गया  जब  उनमे  से  एक  ने  बंद  पंखो  की  कई  angles  से  तस्वीरे  लेनी  शुरू  कर  दी  ।   जैसे  पुलिस  घटना  के  बाद  घटनास्थल  की  तस्वीरे  लेती  हैं  । 

कुछ  दिन  बाद  2 आदमी  सीदी  लेकर  पंखा  ठीक  करने  आये  तो  पता  चला  की  खराबी  पंखो  में  नहीं  switch  board  में  थी  । उस  दिन  वो  switch  भी  उखाड़  कर ले  गए ।   अब  वो  पंखे  UPA -2  की  तरह  बस  अपने  दिन  गिन  रहे  हैं ।

 

2 comments:

  1. hahahahahahhahahhahaa.......hats off to ur Writing.....Its a Talent Boss....Liked reading ur eevry stanzaa.....

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