Friday, 31 July 2020

प्रेम का वृक्ष


क्यों चली गई तुम, मुझको छोड़ कर तन्हा
मेरे दिल का दर्द, करके दुगना।
रात भर कहती रही हां हां
सवेरे कर गई ना।

अनोखी थी हमारी प्रेम कहानी भी,
पतझड़ में खिली थी कलिया,
बसंत में हो गया था मनमुटाव।

अब फिर से आ रहा है पतझड़,
मैंने सीचे रखा है हमारे प्रेम का वृक्ष।
हो सकता है फल नसीब ना हो इस जन्म में,
लेकिन मुझको है अटल विश्वास ,
वापस लेता रहूंगा जन्म
जब तक न चख लू हमारे प्रेम के वृक्ष के फल।

Monday, 27 July 2020

अन्याय

न्याय के मंदिर में 
प्रेम ढूंढ रहा था वो।
बाबा साहेब के संविधान की जगह
तुमको था पूज रहा।
मेनका बनकर
विश्वामित्र की तपस्या तो भंग कर दी|
लेकिन संसार बसाने के बजाय
क्यों धकेल दिया उसे बुद्ध की राह पर।
न्याय के मंदिर में ऐसा अन्याय!